बंद दरवाज़ा
शायद पीछे तुम हो
नहीं जानती
खुल जाए ग़र ये
शायद तुम्हें देख
समझ पाऊं
उलझा हुआ है जो इस दरवाज़े के पीछे
शायद सुलझ जाए
आहट तो है तुम्हारी उस ओर
पदचापें भी हैं कुछ अधीर सी
घबराहट है कहीं जान न लूं मैं तुम्हारा अंतर्मन
शायद इसी लिए किया है तुमने दरवाज़ा बंद
कब तक रखोगे मुझे बाहर
मैं-जो एक एहसास हूँ,
मैं-जो तुम्हारे साथ हूँ सदा
नकार न पाओगे मेरे वजूद को
क्योंकि तुम हो
इस लिए मैं हूँ!!!!!
February 19, 2011 at 12.20 A.M.
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