तुम्हारे न होने से ही
चटखता है मन में कुछ!
दर्पण क्या देखूं?
अपना चेहरा तो देख लेता था,
तुम्हारी आँखों में!
अब तुम नहीं,
तो खुद को देखने का मन भी नहीं!
गिर के चटख भी जाए दर्पण अब तो क्या?
तुम्हारे न होने के एहसास के सामने,
दर्पण के टूटने का गम नहीं!!!
February 13, 2012 at 4.33 P.M.
(inspired by Maya Mrig's status-----कुछ चटखता सा है.....नहीं तुम कहीं नहीं हो.....बच्चे हैं.....दर्पण गिरा दिया होगा.....)
thanks Sushma...
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