औरत को दबाना,
अपना हक़ समझते होI
हर हाल में दबाते होI
हर तरह से दबाते होI
कभी पैरों तले,
कभी अपनी कड़वी जुबाँ से निकले
शब्दों से,
कभी मानसिक प्रताड़ना दे कर,
कभी उचित अधिकार मार करI
यहाँ तक कि माँ बनने का हक़ भी छीन लेते होI
माँ बनना तो उच्त्तम अधिकार है उसकाI
फिर क्यों ऐसा दुर्व्यवहार करते हो?
माँ बनने के बाद औरत मर्द के संग रहे न रहे,
ये भी उसी का निर्णय हैI
तुम क्यों समाज के ठेकेदार बन,
उस पर अपनी हर बात, हर मर्ज़ी,
थोपते हो?
बच्ची जन्मी हैI
मातम मत करोI
खुशियां मनाओI
मैं कर लूंगी उसकी देखभाल,
स्वयंI
तुम्हारी आवश्यकता नहींI
न ही तुम्हारे नाम कीI
मेरी बच्ची है,
मेरे नाम से ही बढ़ेगीI
पर तुम कहाँ समझ पाओगे?
तुम्हें कहाँ ये बात हज़म होगी,
कि मैं सक्षम हूँ
उसे पालने, सँभालने
और बढ़ा करने मेंI
तुम नहीं समझ पाए,
आदमी या औरतI
पर एक किन्नर ने समझ लियाI
कहा कि मेरी बिटिया हैI
मेरी ही रहेगीI
हर बार रोड़े अटकाएI
हर बार घृणा भरी नज़रों से देखाI
घृणा से लबालब शब्दों के नश्तर चलाएI
एक लहर आयी है,
मुझे डूबाने के लिएI
एक जवार उठी है,
मुझे बहा ले जाने के लिएI
लगता है टूट गयी हूँ फिर से,
कि कहने को कुछ नहीं बचा हैI
मेरी आवाज़ तुम्हारी घृणा की गड़गड़ाहट में
डूब गई हैI
पर मैं रो नहीं सकतीI
मैं टूट नहीं सकतीI
जब-जब तुम कोशिश करोगे,
मेरी आवाज़ को बंद करने की,
मुझ पर प्रहार करने की,
मैं चुप नहीं रहूँगीI
हालांकि तुम मुझे चुप रखना चाहते होI
और जब भी तुम कोशिश करते हो,
मैं काँप जाती हूँI
पर मुझे पता है कि मैं अनिर्वचनीय नहीं रहूँगीI
पर मुझे पता है कि मैं अनिर्वचनीय नहीं रहूँगीII
(June 7, 2020 at 6.05 P. M.)