मैं जो कर रहा हूँ,
क्यों कर रहा हूँ?
क्या यही मेरी नियति है?
क्या मुझे यही करना था?
यही करना चाहिए?
या शायद कुछ और?
भीतर बाहर का अँधेरा,
एक-दूसरे को टोकते,
लड़ते,
बेकरार
शायद दोनों एक ही हैं!
मेरे ही चुने हुए!
शायद रौशनी अभी दूर है!
शायद यही नियति है!
शायद यही रौशनी!!!!!!!!!!
March 21, 2011 at 5.12 P.M.
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