तुम तक पहुँचने की हर कोशिश की,
बहुत आवाजें लगाईं,
खिडकियों से झाँका,
दरवाज़े खटखटाए,
तुमने तो जैसे सारे रस्ते ही बंद कर दिए
देना तो चाहा था अथाह प्यार तुम्हें,
तुमने उसकी थाह नहीं जानी
तुम अपनी राह चल पड़े
जिस राह पर मेरा साथ न था
बंद दरवाजों के पीछे
तुमने छुपा लिया खुद को
पहुँच जाती तुम तक
तो मिल जाते न हम
और यह नफरत की दीवार भी नहीं रहती
हमारे बीच!!!!!
March 30, 2012 at 2.55 P.M.
Ispired by Maya Mrig's post----नफरतें छोड़ आया....प्यार मिला नहीं...इस रास्ते पर कभी आगे, कभी पीछे चला ...बार बार......तुमने भी तो की होंगी यात्राएं....पहुंचे तो तुम भी नहीं....मुझ तक...
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