भागीरथी गंगा को धरती पर उतार लाये,
पापियों का उद्धार करने के लिए!
गंगा की उदारता तो देखो,
सबके पाप अपने में समेट,
बस बहती रही!!
खोजने से भी नहीं मिला,
उसकी छाती पर कोई घाव!
अपनी गन्दगी डालते रहे उस में,
रिसते नासूर धोते रहे!
गंगा तब भी बहती रही!!
अपने सपनों की उम्मीद लिए,
गंगा में डुबकी लगाते,
मोक्ष माँगते,
अपने पैरों तले,
गंगा की पावन लहरों को रोंदते,
आगे बढ़ते रहे,
गंगा तब भी बहती रही!!
नदियाँ भी मिलीं उसमें,
और नाले भी,
गंगा का पानी,
तब भी निर्मल ही रहा!
सबकी पीड़ा को अपने अंतर्मन में समेटती,
गंगा तब भी बहती रही!!
उफ़ न की, कोई आवाज़ नहीं,
बस गंगा बहती रही!!!!
April 2, 2012 at 9.59 P.M.
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