वक़्त चलता रहा, कुछ साथ रहा, कुछ पीछे छूट गया!
निरंतर चलता यह क्रम, जाने कहाँ तक बहा कर ले गया!
दरवाज़े की कुछ आहटें, सरगोशियाँ करती, तुम तक पहुँच गयीं!
पर्दों से छन कर आती, सूर्य की रौशनी, तुम पर आ ठहर जाती!
जिंदगी नए पंखों से उड़ान भरती, वक्त के पहिए पर सफर करती, कुछ पल दे गयी!
एक शाम अचानक, पलों का कारवाँ, कहीं पीछे छूट गया!
तुम तक पहुँचने वाली रौशनी, उदासी के में बदल गयी!
ठहरे हुए पल, बेतरतीब पड़े, बस याद दिलाते रहे तुम्हारी!!!!!
(यादों के पल, धुंधले हो, तुम तक आ रुक जाते हैं..........)
(( क्या जरूरी है कि जिंदगी करीने से जी जाए--- उन पलों के बिना..........))
एक शाम अचानक, पलों का कारवाँ, कहीं पीछे छूट गया!
तुम तक पहुँचने वाली रौशनी, उदासी के में बदल गयी!
ठहरे हुए पल, बेतरतीब पड़े, बस याद दिलाते रहे तुम्हारी!!!!!
(यादों के पल, धुंधले हो, तुम तक आ रुक जाते हैं..........)
(( क्या जरूरी है कि जिंदगी करीने से जी जाए--- उन पलों के बिना..........))
(Dec., 2012 at 9.38 P.M.)
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteshukriya यशवन्त माथुर and sushma...
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