एक-एक लफ्ज़,
हर लफ्ज़ में सिमटी ज़िन्दगी,
कैसे भुला सकती थी वो!
हर लफ्ज़ में सिमटी ज़िन्दगी,
कैसे भुला सकती थी वो!
हर लफ्ज़ में हकीकत थी!
आँखों के रास्ते दुःख बह चला था!
सच्चाई की प्रतिधवनि,
गूँज रही थी हर ओर!
सुन्दरता की परिभाषा,
देह से अधिक,
उसके व्यक्तित्व में थी,
समझ चुकी थी वो!
सम्बंधों को खींच- तान कर,
नहीं बनाया रखा जा सकता था,
जान चुकी थी वो!
रेत के महल से ये संबंध,
हवा के झोंकों से टूट,
रेज़ा-रेज़ा हो बिखर सकते थे,
जान चुकी थी वो!
हर लफ्ज़ में,
दिल के रिश्ते,
चट्टानों से भी मज़बूत होते है,
समझ चुकी थी वो!
वक़्त का तूफ़ान,
मुसीबतों की आंधी,
हिला नहीं सकती थी उन्हें,
समझ गयी थी वो!
समाज की बनायीं,
तख्ती पर नहीं टांगना था,
लफ़्ज़ों में छुपे उन रिश्तों को,
जान चुकी थी वो!
संबंधों की लम्बाई-चौड़ाई,
नहीं नापनी थी उसे,
जान गयी थी वो!
लफ़्ज़ों में छुपी गहराई,
समझ गयी थी वो!
(ख़त फटने की हालत में था----लफ़्ज़ों ने संबंधों को सी कर रखा था-------)
आँखों के रास्ते दुःख बह चला था!
सच्चाई की प्रतिधवनि,
गूँज रही थी हर ओर!
सुन्दरता की परिभाषा,
देह से अधिक,
उसके व्यक्तित्व में थी,
समझ चुकी थी वो!
सम्बंधों को खींच- तान कर,
नहीं बनाया रखा जा सकता था,
जान चुकी थी वो!
रेत के महल से ये संबंध,
हवा के झोंकों से टूट,
रेज़ा-रेज़ा हो बिखर सकते थे,
जान चुकी थी वो!
हर लफ्ज़ में,
दिल के रिश्ते,
चट्टानों से भी मज़बूत होते है,
समझ चुकी थी वो!
वक़्त का तूफ़ान,
मुसीबतों की आंधी,
हिला नहीं सकती थी उन्हें,
समझ गयी थी वो!
समाज की बनायीं,
तख्ती पर नहीं टांगना था,
लफ़्ज़ों में छुपे उन रिश्तों को,
जान चुकी थी वो!
संबंधों की लम्बाई-चौड़ाई,
नहीं नापनी थी उसे,
जान गयी थी वो!
लफ़्ज़ों में छुपी गहराई,
समझ गयी थी वो!
(ख़त फटने की हालत में था----लफ़्ज़ों ने संबंधों को सी कर रखा था-------)
December 16, 2012 at 11.38 P.M.
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