चाँदनी बिखरी थी हर ओर,
चंदा की देह,
चमकती,
अपनी ओर आकर्षित करती,
बुलाती।
खिचता चला गया था,
उसकी ओर।
रोक नहीं पाया था,
ख़ुद को,
उसे अपना बनाने से।
मोहब्बत फूट पड़ी थी,
रोम-रोम से।
हृदय के हर कोने में,
बस गयी थी वो।
रगों में,
खून के साथ,
दौड़ने लगी थी।
व़क़्त ने ऐसी करवत ली,
जुदा हो गये दो दिल।
दे न पाया,
चंदा को माँ बनने की खुशी।
रोती-कलपती और मनौतियां मानती,
बेटे की सन्तान का अरमान
अपने साथ ले,
माँ भी चली गयी।
क़र्ज़ में डूबा रोम-रोम,
उभर ही न पाया,
किसी भी युक्ति से।
चंदा की देह,
चमकती,
अपनी ओर आकर्षित करती,
बुलाती।
खिचता चला गया था,
उसकी ओर।
रोक नहीं पाया था,
ख़ुद को,
उसे अपना बनाने से।
मोहब्बत फूट पड़ी थी,
रोम-रोम से।
हृदय के हर कोने में,
बस गयी थी वो।
रगों में,
खून के साथ,
दौड़ने लगी थी।
व़क़्त ने ऐसी करवत ली,
जुदा हो गये दो दिल।
दे न पाया,
चंदा को माँ बनने की खुशी।
रोती-कलपती और मनौतियां मानती,
बेटे की सन्तान का अरमान
अपने साथ ले,
माँ भी चली गयी।
क़र्ज़ में डूबा रोम-रोम,
उभर ही न पाया,
किसी भी युक्ति से।
गाँव में बातें होने लगीं।
चंदा माँ बनने वाली है।
लैम्प की पीली रोशनी में,
अस्त-व्यस्त-सी
दिखी चंदा।
आधा चेहरा ही दिख पड़ा,
आधा गहन कालिमा में डूबा अदृश्य।
उसे देख लगा,
कि एकदम नंगी हो गई वो।
अतिशय लज्जित हो,
समटने लगी ख़ुद को।
उसे लगा,
घर के हर कोने से,
अन्धेरा सैलाब की तरह बढता आ रहा था।
एक अजीब निस्तब्धता,असमंजस।
गति तो थी,
पर मंज़िल का पता नहीं।
शक्लें तीन,
पर कोई आकार न था।
सब्र का बाँध टूट गया,
"बेशर्म! बेग़ैरत!
कहाँ इज़्ज़त बेच आई?"
सीसकती चंदा बोली,
"लेकिन जब तुमने मुझे बेच दिया.......''
लैम्प की पीली रोशनी में,
अस्त-व्यस्त-सी
दिखी चंदा।
आधा चेहरा ही दिख पड़ा,
आधा गहन कालिमा में डूबा अदृश्य।
उसे देख लगा,
कि एकदम नंगी हो गई वो।
अतिशय लज्जित हो,
समटने लगी ख़ुद को।
उसे लगा,
घर के हर कोने से,
अन्धेरा सैलाब की तरह बढता आ रहा था।
एक अजीब निस्तब्धता,असमंजस।
गति तो थी,
पर मंज़िल का पता नहीं।
शक्लें तीन,
पर कोई आकार न था।
सब्र का बाँध टूट गया,
"बेशर्म! बेग़ैरत!
कहाँ इज़्ज़त बेच आई?"
सीसकती चंदा बोली,
"लेकिन जब तुमने मुझे बेच दिया.......''
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