लिंग भेद सदा किया,
औरत
को आगे नहीं आने दिया।
तुमने
कहा, ‘हर राह पर कांटे हैं।
पैर
तो क्या,
जिस्म
और रूह तक छलनी हो जाएंगे।
जितनी
ऊंची छलांग लगाओगी,
शीशे
की छत उतनी ही उठती जायेगी।'
क्या
पता था तुम्हें,
जन्म
लेगी ऐसी इक नार,
करेगी
जो देश का उद्धार।
15
जनवरी 1934 को संक्रांति के पावन दिन जन्म लिया।
माता-पिता
ने रमा देवी नाम दिया।
घर
सजा था, मंदिर और नगर सजे थे।
पवित्र रंगोली आँगन
की सुंदरता बढ़ा रही थी।
आँगन के भीतर,
नन्ही रमा की किलकारियां,
मन मोह रही थीं।
पढाई में रूचि इतनी
कि
कानून में
स्नातक के बाद,
स्नातकोत्तर
भी कर डाला।
आंध्र प्रदेश
हाई कोर्ट में वकालत की।
तदोपरांत
नवीं , परन्तु पहली महिला मुख्य चुनाव आयुक्त चुनी गई।
राज्य सभा की
पहली और आज तक की इकलौती महिला महासचिव बनी।
हिमाचल
प्रदेश की इस राज्यपाल का क्या कहना,
जो कर्नाटक
की भी इकलौती महिला राज्यपाल बनी।
अड़चन बगैर चुनाव
करवाना कहाँ आसान होता है?
कहाँ आसान होता
है किसी भी राज्य का कार्यभार संभालना?
प्रतिभावान रमा
ने,
संभाल लिया सब।
मुँह बंद कर दिया,
रूढ़िवादी पितृसत
समाज का,
अपनी लगन और आत्मविश्वास
से।
क्या
कहना ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व का,
योग्यता
जिसकी अतुल्य थी।
बन
गई प्रेरणा आने वाली पीढ़ियों के लिए।
दिखा
दिया न केवल भारत परन्तु समस्त विश्व को
कि
औरत होना अभिशाप नहीं।
अपने
हिस्से की ज़मीं चुन,
अपना
आसमां भी चुना,
पंख
फैलाने को।
सार्थक
किया अपने नाम को।
लड़कियों,
औरतों को आगे बढ़ने के
नए
आयाम दिए।
धन्य
है भारत की नारी,
प्रेरित
कर,
पड़ती
सब पर भारी।
जय
हो हिन्द की नारी।
वी. एस. रमादेवी पर कविता ….
(Dec. 20, 2020 at 3.02. A. M.)
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