तनहा हूँ,
तन्हाई सदा मेरे साथ है!
लफ़्ज़ों की भीड़ में,
मेरी ख़ामोशी चीखती है!
मन के कोने में दबे लफ्ज़,
बाहर आने को तड़पते हैं!
गुथम-गुथा हो रहे हैं अन्दर,
लड़ाई,
खीचा-तानी,
अंतर-द्वंद्व,
कब तक चलेगा?
कब ख़त्म होगी यह तन्हाई?
शायद कभी नहीं!!
अकेले आये हैं,
अकेले जूझेंगे इस तन्हाई से,
लफ्ज़ ढूँढ आवाज़ देंगे इसे
अपने लिए,
खुद से बात करने के लिए!!!
January 26, 2010 at 11.15 P.M.
khud ka khud se sangharsh aur sabke beech rahkar bhee tanhaai keeanubhooti
ReplyDeleteNeenu,
ReplyDeleteWhen I read your poem, I was tempted to write these lines:
"विभाजिता"
वह जान गई
कि बाहर कोई नहीं
जो उसकी
आवाज़ सुनेगा।
इतने शोर में तो
कोई अपनी आवाज़ तक
नहीं सुन पाता ---
इसलिए
उसने बांट लिया
अपने को दो भागों में
ताकि
जब एक भाग बोले
तो दूसरा सुने।
Neenu,
ReplyDelete"Sinthanai" which means "Musings" is the name of my Tamil blog. It is me --- S.K. Dogra. So, whenever you see a comment from Sinthanai, please understand that it is from none other than me.