गर उनका आना हो जाता
वो भी वक़्त से कुछ लम्हे चुरा लेते!
पर बेरहम वक़्त को कहाँ मंज़ूर!
वक्त तो वक्त है!
किसी की भावनायों की,
वक़्त को क्या पड़ी!
पर किस-किस की भावनायों का ध्यान रखे वो?
यह तो अपना काम करता है बस!
जो समझते हैं वक़्त को,
उनकी भावनाएं तो समझ सकता है कमबख्त!
वक्त, पर, किसी के साथ नहीं रहता,
सब वक्त के साथ रहते हैं!
पर हाथ नहीं थामता किसी का!
बस संकेत भर करता है
कि चले आओ----
सब घबराहटों को पीछे छोड़कर,
मैं साथ हूं तुम्हारे------
September 17, 2011 at 4.33 P.M.
मैं साथ हूं तुम्हारे------bhaut khubsurat abhivaykti....
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
खुबसूरत पंक्तिया.....
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