वो अनदेखा सा था
इक अनजाना
वो भी आगे बढ़ा
मैंने भी हाथ बढाया
फिर न जाने कौन सी आँधी चली
उसकी आहट उसमें दब कर रह गयी
बिना कुछ कहे वो समय के अँधेरे में गुम हो गया
वो अनजाना अनजाना ही रह गया
अपने रहेस्यों को खुद में समेटे
वो चला गया
समय की धारा में वलीन होता
वो चला गया
और उसकी अनकही
उसी के साथ चली गयी
मैं समझ नहीं पायी
इस रहस्य को
पर वो अनदेखा सा अनजाना सा
चला गया!!!!(06.02.2010)
wah proffessor ...aap ki kavita ne mujhe prerit kiya hai ..achaa laga aapko padhna
ReplyDeletewaaah kya baat hai, bahut khoob, behad khubsurat
ReplyDeletesukriya rakesh n fauziya
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