एक दिन जब पीछे मुड़ कर देखा
ज़िन्दगी पीछे खड़ी थी!
जी तो रही थी मैं
पर जिंदा नहीं थी!
वो चुलबुलापन और वो हँसी के ठहाके
कहीं पीछे छूट गए थे!
जिम्मेदारियों ने इतना जकड लिया था
कि मुस्कुराना ही भूल गयी थी!
अचानक एक दिन
फिर ज़िन्दगी से मुलाकात हो गयी!
और, आज हम दोनों साथ-साथ चल रहे हैं
उसी चुलबुलेपन और हँसी के ठहाकों के साथ ले कर
जो कभी पीछे छूट गए थे!(06.11.2005)
जिम्मेदारियों मे खुद भी भूल जाते है कभी कभी हम लोग,
ReplyDeleteलेकिन जिंदगी से मुलाकात हो ही जाती है
well said.
ReplyDeleteऔर, आज हम दोनों साथ-साथ चल रहे हैं
ReplyDeleteउसी चुलबुलेपन और हँसी के ठहाकों के साथ ले कर
neenu ...yah chulbulapan aur yeh hansi hi asli jeevan hai yeh wo taqat hai jo aadmi ko nek banati hai .....aur es duniya ko rehne layak banati hai aapki kavitabahut hi sahaj v saral sabdo mein us bhav ko gunth ker yatharth ke jeevan ko saral banati hai ...jabki yatharth bahut hi thos v sakht jameen per khada hota hai ...aapko dhanyawad .ek achi kavita prastut kerne ke liye
thanx parvinder,anil and rakesh...
ReplyDelete