जब श्मशान की ओर चल ही दिए,
तो घर का क्या सोचना!
तुम्हारे श्मशान की ओर जाते ही,
भविष्य के सारे ख़्वाब भी राख़ हो गए!
रात भर तुम्हारी याद आती रही,
दिल को यूं ही तडपाती रही!
पर, अब तो तुम्हें न आना था,
न ही तुम आये!
श्मशान जाने वाले रास्ते पर,
रौशनी न थी!
काला सियाह अँधेरा,
तुम्हारे जाते ही,
अपने में सब समेट,
और गहराता चला गया,
मेरे जीवन की स्याही,
कपड़ों की सफ़ेदी से भी,
मिट न सकी!!!!!!
May 6, 2012 at 1.57 P.M.
Inspired by Maya Mrig's post----श्मशान से नगाड़ों की आवाज़ आती रही
आधी रात को...।
पीछा करते पांवों के निशान उलटे थे
रास्ता घर की ओर लौटता था.....
(यह अलग बात है कि मैं तुमसे भविष्य की चर्चा करने आया था... )
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