रात की मखमली चादर में,
तारों भरे आसमाँ को,
देख मन में इक ख़ुशी की लहर,
अचानक ही उछल पड़ी थी!
इक आधा सा चाँद,
अपनी रौशनी बिखेरता,
दूर आसमाँ में तैरता फिर रहा था!
महसूस कर वो नज़ारा,
आज भी उसकी खूबसूरती,
आँखों को ठंडक दे जाती है!
इक सुबह ,
पक्षियों के चहचहाने में,
सुना था इक राग!
कानों से दिल में बंद कर लिया था उसे,
अपनी तनहियों में सुनने के लिए!
आज भी वो धुन,
जलतरंग सी बजती है,
मन में!
नर्म, हरी घास पर,
ओस की कुछ बूँदें,
कैद कर ली थीं,
दिल के आईने में!
नज़रें झुका,
देख लेती हूँ उन्हें,
मन के भीतर आज भी!
जब चली थी,
ओस-भरी घास पर,
महसूस की थी पैरों से,
वही नर्मी,
जो थी रात की मखमली चादर में!
इक एहसास,
इक छुअन,
अताम्विभोर कर दिया था जिसने!
आज भी महसूस करती हूँ,
उसी एहसास को,
जो है साथ,
इक मखमली चादर की तरह!!!!!
May 03, 2012 at 12.06 P.M.
भावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteshukriya Sushma...
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