दिल जब टूटता है,
कोई आवाज़ नहीं होती।
केवल दर्द होता है।
आंखों से
अश्कों के रूप में
बहता है।
अश्क,
जो केवल अश्क न हो कर,
आशिक का ख़ून होते हैं।
क्या इन अश्कों को,
इस दर्द को,
कोई समझता है?
टूटे हुए दिल का साथ
कोई नहीं देता,
जब अपना हमसफ़र ही
साथ छोड़ देता है।
अपने अश्कों के संग,
ख़ुद ही रोना पड़ता है।
अपने दर्द को ख़ुद ही
सहना पड़ता है।
यही दस्तूर -ए दुनिया है।
अपने अश्कों को ख़ुद ही पोंछ कर,
मुस्कुराना पड़ता है।
और
अपने ही दर्द को छिपा,
दुनिया को ख़ुशी का चेहरा दिखाना पड़ता है।।
No comments:
Post a Comment