रात नींद आंखों से कोसों दूर थी।
टकटकी लगाए आंखें छत की ओर देख रहीं थीं।
ज़हन में सवालों का ताना-बाना,
किसी करवट चैन नहीं लेने दे रहा था।
न जाने किन सवालों से परेशान है मन?
ये आंखें नम?
रात भर दर्द से भरी
आहें निकलती रहीं।
शमा की आंखों से लहू टपकता रहा।
नींद की आगोश में आंखें,
न जाने क्यों नहीं जाना चाहतीं?
सोचती हैं
जिसका इंतज़ार है,
शायद वो छम से आ जाए
और रात/ ज़िंदगी को रंगीन कर दे।।
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