मेरे वजूद का होना न होना एक बराबर
यदि यह किसी के काम न आ सके!
मेरी दयनीय असहायता मेरा मुँह चिढ़ाती है,
मुझ पर हँसतीं है !
मुझ से हर बार कहती है--
उठ, कुछ कर !
उन अभागों के लिए,
जिनका और कोई नहीं है!
उठ, और उन्हें गले लगा,
जो प्यार को तरसते हैं!
तेरे तो पाँव हैं जो तुझे तेरी मंजिल की तरफ़ ले जायेंगे!
उठ. और उनका सहारा बन,
जो चल नहीं सकते!
तू तो दुनिया देख सकता है,
उन्हें अपनी आँखों से कुदरत के रंग दिखा,
जिनकी दुनिया बेरंग है!
अपनी असहायता के दायरे से बाहर निकल,
और उनके लिए जी जो तेरी ओर आँखें बीछाए, टकटकी लगाए
उम्मीद भरी आँखों से देख रहे हैं!
क्योंकि शायद वह तेरी क्षमता को देख सकते हैं
वह क्षमता जो तेरी असहायता के पीछे छिपी है!
उठ, और अपनी असहायता को अपनी ताक़त बना
और दुनिया के दर्द को बाँट,
अपनी हस्ती बना!!!!(07.03.2010)
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