प्यासी बंजर धरती
टकटकी लगाए आसमान की ओर देख रही है
आशा है की बादल बरसेंगे
और उसकी प्यास बुझा उसे तृप्त करेंगे
परन्तु बादल तो निर्मोही हैं
मुँह मोड़ कर जा रहे हैं
धरती लाचार सी
उन बादलों को जाते हुए देख रही है
जानती है कि बेबस है
कुछ नहीं कर पायेगी
केवल तरसती निग़ाहों से
उन बादलों को जाते हुए देखती रहेगी!!!!(21..03.2010)
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