लफ़्ज़ों का क्या करना है?
बेपर्दा कर देंगे ये,
उन जज्बातों को,
जो सिर्फ नज़रों की बोली समझते हैं!!
उसका दीदार तो,
नज़रों की गहराईओं से होता है!!
खामोश रहने दे मुझे!
न कर लफ़्ज़ों के लिए इसरार!
मेरे साथ है तू न जाने कब से!
तो क्या तू मेरी चुप्पी को नहीं समझता??
लफ़्ज़ों में बयाँ हो बात निकलेगी,
तो लोगों के तानों का सबब होगी!!
मेरी ख़ामोशी ही मेरे प्यार का इज़हार है!
समझ इसे और मुझे चुप रहने दे!!!(20.05.2010)
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