आग उगलता सूरज,
झुलसती गर्मी,
बिलबिलाते बच्चे,
सड़ते पेड-पौधे,
पनाह माँगते जानवर!
सब आँखें उठाये,
आसमान की तरफ,
हसरत-भरी निग़ाहों से देख रहे हैं!
बरसो रे मेघा बरसो रे!
कब बरसोगे?
कब राहत मिलेगी इस गर्मी के उफ़ान से?
अब तो ठहर जा,
अपने वेग को तनिक कम कर!
माना कि तुम्हारा आग उगलना निहित है,
पर थोड़ा तो रहम कर!
तनिक साँस लेने दे!
जी लेने देने दे थोड़ी सी ज़िन्दगी!
अब तो ठहर जा,
अपने वेग को तनिक कम कर!(23.05.2010)
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