बादल के रुई जिस्म को चीर कर,
सूरज की पहली किरण बाहर आई है!
इक नई सुबह का पैग़ाम अपने साथ लाई है!
नई कोम्प्लें फूटी हैं,
जो नए जीवन का आश्वासन देती हैं!
कैसे कहें कि सूरज की किरण ज़ालिम है?
वो तो जीवन को धरती की कोख से अंकुरित कर
कांपते,लरज़ते होठों को मुस्कान देती है!
August 2, 2010 at 1.35 P.M.
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