बादलों की गर्जन हुई,
एक पल के लिए उसका दिल कांप गया!
संकुचाई सी,
अपने प्रियतम के आगोश में समां गयी!
उसकी छाती से लग,
धड़कन और बढ़ गयी!
होंठों की कंपन बढ़ी,
नज़रें झुक गयीं!
पर उसने अपना दामन झटक लिया!
उसके प्यार को रुसवा कर दिया!
होठों की कंपन में उसे लाचारी दिखी!
झुकी नज़रों में बेचारगी दिखी!
उसके प्यार को समझ न पाया,
अकेला उसे छोड़ चला गया!
बादलों की गर्जन से,
अब दिल डरता है!
बारिश की बूंदों से,
मन पिघलता है!
होंठ मौन हैं अब,
आँखें वीरान सी,
झुकती नहीं!
वो मूरत है अब पत्थर की,
प्यार के लिए दे दी जिसने ज़िन्दगी!!!!
April 25, 2011 at 6.36 P.M.
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