कडवी, खट्टी, मीठी,
आँखों से छलक जाएँ,
सब धुंधला जाता है!
हर खिड़की, हर दरवाज़े से
अन्दर आती हैं!
सरगोशियाँ करतीं, सहलातीं,
रूठ जातीं कभी, कभी खुद मनानें आतीं!
सरगोशियाँ करतीं,
दिल में बसतीं!
लफ़्ज़ों में बयाँ न हो पाएँ जब भी,
चुपके से आ जातीं हैं,
खामोश एहसास की तरह!
बीते लम्हों की यादें,
कठोर, कोमल!
खूँटी से टंगी,
कभी बिलकुल अकेली,
मेरे आने का इंतज़ार करतीं!
(पन्ने पलटते यादों की किताब के...सोचती हूँ--जाने किस गली में ज़िन्दगी से मुलाकात हो जाए.....)
July 13, 2012 at 12.04 A.M.
At the end of it......all we have is MEMORIES.
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