उसने पूछा, "कहाँ जा रहे हो?"
मैंने कहा, "मैं तो लापता हो गया हूँ!
मेरी दुनिया कहीं खो गयी है!
फिसल गयी मेरे हाथ से,
जैसे हथेलियों से पानी फिसल जाता है!
खोयी है ज़िन्दगी कुछ इस तरह,
जैसे बुढापे में जवानी खो जाती है,
जैसे होठों से हँसी,
और रेगिस्तान से पानी!
बहुत कोशिश की ढूँढने की,
कभी भीगे तकिये तले,
कभी बंद किवाड़ के पीछे,
कभी कमरे के अँधेरे कोने में,
मिली नहीं पर कहीं भी!!
फुदकती फिरती थी,
कभी तो हर जगह!
मुस्कुराती, खिलखिलाती,
तितलियों के पीछे भागती,
हर ओर अपनी ताजगी बिखेरती!!
अब तो बस एहसास भर ही बाकी रह गया है,
धुँधली आँखों में,
जाने कहाँ खो गयी है..
हाँ, वही तो..मेरी दुनिया!"
April 21, 2012 at 12.57 A.M.
अब तो बस एहसास भर ही बाकी रह गया है,
ReplyDeleteधुँधली आँखों में,
जाने कहाँ खो गयी है..
हाँ, वही तो..मेरी दुनिया!"बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
thank you very much sushma 'आहुति'---
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