तन्हाई थी जब तुम नहीं थे,
तुम आये,
शब्दों का ताँता लग गया!
गीतों को बोल मिल गए!
चाहतों की भीनी-भीनी महक,
बिखर गयी फ़िज़ां में!
हर तरफ अलफ़ाज़,
इक नयी कहानी कह,
जीवन को महका रहे थे,
जैसे गर्मी की पहली बारिश,
सौंधी-सौंधी मिट्टी को सहला,
गौर्वान्वित कर रही थी उसे!
दोनों को इक दूजे के होने से,
इक दूजे में प्रेम से बहने से,
जीवन का अर्थ मिल गया हो जैसे!!!!
April 26, 2012 at 1.12 A.M.
No comments:
Post a Comment