हम-तुम तो बँधे थे,
भरोसे की डोर से,
तुमने कब सवाल-जवाब की दीवारें खड़ी कर दीं?
दिल की कोमल ज़मीं को,
छलनी कर डाला तुमने,
अपने नश्तरों से!
अभी भी पूछते हो,
कि हमारी आँखों से लहू क्यों टपकता है?
क्या तुम्हें नहीं पता,
तुमने कितने कांटें चुभोए हैं मेरी आँखों में???
April 25, 2012 at 12.13 A.M.
No comments:
Post a Comment