बंजर हो रही है धरती,
पानी माँगती,
आसमान की ओर देखती,
बाहें फैलाए,
पानी के आलिंगन को तरसती,
अपने ही बच्चों के हाथों मरती,
सौतेलेपन का एहसास सहती,
चुपचाप जलती,
रोती, कराहती, बिलबिलाती,
रात किसी तरह निकाल,
सुबह फिर सूरज की आग में जलने को तैयार,
पानी के बिना जीवन जीती, मरती......
बंजर हो रही सुखना झील, घुट-घुट मरती.......
June 18, 2012 at 8.02 P.M.
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