नासमझ थे,
बच्चों से खिलखिलाते थे,
न चिंता, न फ़िक्र,
बस नासंजझी और अल्हड़पन!
जीवन था मुस्कुराहटों से भरा,
हर ओर खिले थे फूल सदा!
फिर अचानक,
हवा का रुख बदल गया,
वक़्त ने करवट ली,
समझदारी ने दस्तक दी!
आवेगिता छुर्र हो गयी!
तोल-मोल कर बोलने लगे सब,
हँसी की जगह चिंता घिर आई मन में!
माथे पर सलवटें,
आँखों में गुस्सा,
जीवन नीरस,
अटपटा सा!
समझ ने बौना बना दिया ...या रब......
ये समझ तू वापस ले ले अब .........
June 21, 2012 at 12.02 A.M.
bilkul sacchi baat... sundar!!
ReplyDeleteshukriya Yashwant Mathur and Madhuresh...
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