शब्द तुम्हारे भी,
शब्द मेरे भी!
भावनाएँ जुड़ी हैं हमारी
उन शब्दों से,
जुड़वाँ बच्चों की तरह!
एक सी शक्लें,
एक सी आदतें,
सब तो एक ही जैसा था!
फिर कैसे कह दिया तुमने,
"अपने शब्द समेट लो,
समझ नहीं आते,
क्या कहना चाहते हैं अब?"
भुला दिए हैं तुमने शब्दों में छिपे किस्से.... जिए थे साथ जो हर शब्द के माध्यम से, इक मीठी याद की तरह.......
शब्द मेरे भी!
भावनाएँ जुड़ी हैं हमारी
उन शब्दों से,
जुड़वाँ बच्चों की तरह!
एक सी शक्लें,
एक सी आदतें,
सब तो एक ही जैसा था!
फिर कैसे कह दिया तुमने,
"अपने शब्द समेट लो,
समझ नहीं आते,
क्या कहना चाहते हैं अब?"
भुला दिए हैं तुमने शब्दों में छिपे किस्से.... जिए थे साथ जो हर शब्द के माध्यम से, इक मीठी याद की तरह.......
ना समेटे शब्द
समेटा खुद को मैंने ....
पसर गयी नीली हो वितान मे
ओस बन ....हरियाली पर ..
कितने छोटे हैं तुम्हारे हांथ ...
क्या अब भी छू सकते हो तुम ?
समेटा खुद को मैंने ....
पसर गयी नीली हो वितान मे
ओस बन ....हरियाली पर ..
कितने छोटे हैं तुम्हारे हांथ ...
क्या अब भी छू सकते हो तुम ?
June 19, 2012 at 12.02 A.M.
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