पहली बार देखा था,
चाँद को धरती के इतने करीब!
मानों छू लूँगा हाथ बढ़ा!
तुम्हारा अक्स था,
उस रात चाँद के
चेहरे पर!
गर छू लेता चाँद को,
तुम्हें छू लेने की अनुभूति हो जाती!
लगा कि चाँद देख रहा है,
मेरे कानों की ओर!
आभास हुआ कि किसी भी क्षण,
दो होंठ उभर आयेंगे,
उसके चेहरे पर,
जो फुसफुसा के कहेंगे,
"बहुत प्यार करता हूँ तुम्हें!"
मन करता है,
वो जो भी कह रहा है,
उसे कहने दूँ!
खुद को भूल जाऊँ,
क्योंकि तुम सुन रहे हो!
तुम और मैं,
एक ही हथकड़ी में बंधे,
न तुम बरी होगे,
न मैं!
तुम्हारी हँसी में,
चाँद की ठंडी चमक है,
शीतल कर देती है,
जो भीतर तक!
(सब महसूस कर, लिख देना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि तुम भी लिख दो सब-----)
((जब तुम लिख दो सब तब भी यही महसूस करो कि तुम नहीं कोई और लिख रहा है और जब लगे कि कोई और लिख रहा है तो महसूस करो कि वह कोई और नहीं तुम ही हो.......))
June 3, 2013 at 12. 19 A.M.
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