तुम्हारा-मेरा प्रेम,
कढ़ाई में लगी उस हल्दी की भाँति,
जो घिस-घिसकर साफ करने से भी नहीं छुटता!
थपक थपक दिल थपक थपक!
नगाड़े की तरह बजते शब्द!
प्रेम की चाह,
जो बाँधे है हम दोनों को!
मोहब्बत ठहर गई थी
हमारे अन्दर!
हमारी बात के अन्दर
हमारी जात के अन्दर!
हमारी जात के अन्दर!
झुंझलाना, गुस्सा करना,
सब तो तुम्हारे ही साथ!
सब प्रेम के ही हिस्से थे!
अलग नहीं थे हम!
तुम्हारी बाहों का तकिया,
मेरे सपने!
तुम्हारा रूठना,
मेरा मनाना!
तुम्हें बुरा लगना,
सब तो मेरा ही था!
(कभी आबे-रवाँ बनकर............कभी कतरे की सूरत में--बह रहा था दोनों के भीतर.......)
((तुम्हारे भावों में उलझा-----तुम्हारे प्यार से सुलझा........तुम्हारे ही जैसा मैं---मेरे जैसी तुम......))
May 31, 2013 at 1.48 A.M.
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