आँखों में चमक थी,
चेहरे पर खूबसूरत मुस्कान!
निगाहें हट ही नहीं रहीं थी,
उस चेहरे की आभा से!
जाने कहाँ से आया इक जोहरी,
कहा-मुझे है चेहरे के भावों की पहचान!
इक टक देखता रहा उसकी ओर,
लगा कि कहीं है दिल में चोर!
उसके करीब गया,
मन की निगाह से देखा!
पाया कि हँसी के तले,
आँखों की चमक के पीछे,
इक गहरी उदासी थी छाई!
दुनिया से छुपा अपना दर्द,
सदा थी मुस्काई!
किसी ने न भीतर झाँका,
न देखी मन की रुसवाई!
सब ने देखा हँसी का मुखोटा,
न देखी मन की रुलाई!
इसी मुखोटे को ओड़े, पहने,
उसने ज़िन्दगी बितायी!
August 8, 2011 at 12:42 A.M.
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