अँधेरा और घना होता चला गया,
उसका अस्तित्व उस में गुम होता गया!
काला स्याह अँधेरा,
मन के भीतर छिपे असुरों सा,
अपने वेग से सब लुप्त करता गया!
कुछ न रहा, कुछ न बचा,
सब अँधेरे की भेंट चदता गया!
इतना गहराया अँधेरा,
कि सुबह होने का गुमां न रहा!
अपने संग सब ले,
अपने में सब समेट,
अँधेरा गहराता गया,
उसके अस्तित्व को ख़त्म करता गया!!!
August 8, 2011 at 3:50 P.M.
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