दुनिया जलाती रही, वो जलती रही!
दुनिया मारती रही, वो मार खाती रही!
उसे लोगों को त्यागना नहीं आता था!
उसे तो केवल लोगों की अच्छाइयों में विश्वास था!
उसे तो बस माफ़ करना आता था!
छोड़ कर जाना उसने कभी सीखा नहीं था!
लोग आते गए,
उसका फ़ायदा उठा , उसे छोड़ जाते गए!
पैरों तले मसल उसे, दुत्कारते रहे!
दुनिया मारती रही, वो मार खाती रही!
उसे लोगों को त्यागना नहीं आता था!
उसे तो केवल लोगों की अच्छाइयों में विश्वास था!
उसे तो बस माफ़ करना आता था!
छोड़ कर जाना उसने कभी सीखा नहीं था!
लोग आते गए,
उसका फ़ायदा उठा , उसे छोड़ जाते गए!
पैरों तले मसल उसे, दुत्कारते रहे!
फिर एक दिन कहा उसने खुद से,
'और न दुतकारी जाऊँगी!
इन सबको छोड़ जाना ही,
एकमात्र विकल्प है!
इनको त्यागना ही होगा,
कि दिल अब छलनी-छलनी है!
जला कर रख दिया है,
जिन्होंने मेरे वजूद को,
बारूद बन अब उनको ही मिटाना होगा!
मिटाई है जिन्होंने मेरी हस्ती,
अब उन्हें आइना दिखाना होगा!
मैं हूँ, मेरा अस्तित्व भी है,
इस बात से जिन्हें इनकार था,
अब उन्हें अपनी शख्सियत से रु-बरु करवाना होगा!
जान ले तू ऐ सितमगर,
अब चिड़िया को पिंजरे से उड़,
सैय्याद के डर से दूर जाना होगा!'
'और न दुतकारी जाऊँगी!
इन सबको छोड़ जाना ही,
एकमात्र विकल्प है!
इनको त्यागना ही होगा,
कि दिल अब छलनी-छलनी है!
जला कर रख दिया है,
जिन्होंने मेरे वजूद को,
बारूद बन अब उनको ही मिटाना होगा!
मिटाई है जिन्होंने मेरी हस्ती,
अब उन्हें आइना दिखाना होगा!
मैं हूँ, मेरा अस्तित्व भी है,
इस बात से जिन्हें इनकार था,
अब उन्हें अपनी शख्सियत से रु-बरु करवाना होगा!
जान ले तू ऐ सितमगर,
अब चिड़िया को पिंजरे से उड़,
सैय्याद के डर से दूर जाना होगा!'
(February 26, 2017 at 3.29 A.M.)
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