संकरी गलियों से गुजरता
उसके आँगन तक आ गया
आँगन से बारादरी
बारादरी से ख्वाबगाह तक पहुँच गया
जाने क्या था, कैसा था
कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था
जहाँ से गुजरा,
रौशनी की हर किरण को खा गया
पँखे की हवा से
घर के इक-इक कोने में फैल गया
दम घुटने लगा
साँस रुकने लगी
पर वो था कि थम ही नहीं रहा था
मानो सब अपने साथ ले कर जाएगा
सबकी जान उसकी मुट्ठी में थी
एक छड़ी घुमाएगा
और सब ख़त्म
बहुत कोशिश की
उसके चुंगुल से निकलने की
लेकिन वो तो ठान कर आया था
कि सब का अंत कर देगा
इतने में इक नन्ही परी
की खिलखिलाहट से
पूरा घर गूँज उठा
हर तरफ़ रौशनी ही रौशनी
डर गया वो
दुम दबा कर भागा
जाने क्या लेने आया था
लेकिन उस परी की
हँसी की ताब न सह पाया
जानता था कि उसके होते
कुछ न कर पाएगा वो
चला गया ख़ाली हाथ
अपना सा मुँह ले कर
दोबारा उस आँगन की ओर
कभी न देखने के लिए
उसके आँगन तक आ गया
आँगन से बारादरी
बारादरी से ख्वाबगाह तक पहुँच गया
जाने क्या था, कैसा था
कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था
जहाँ से गुजरा,
रौशनी की हर किरण को खा गया
पँखे की हवा से
घर के इक-इक कोने में फैल गया
दम घुटने लगा
साँस रुकने लगी
पर वो था कि थम ही नहीं रहा था
मानो सब अपने साथ ले कर जाएगा
सबकी जान उसकी मुट्ठी में थी
एक छड़ी घुमाएगा
और सब ख़त्म
बहुत कोशिश की
उसके चुंगुल से निकलने की
लेकिन वो तो ठान कर आया था
कि सब का अंत कर देगा
इतने में इक नन्ही परी
की खिलखिलाहट से
पूरा घर गूँज उठा
हर तरफ़ रौशनी ही रौशनी
डर गया वो
दुम दबा कर भागा
जाने क्या लेने आया था
लेकिन उस परी की
हँसी की ताब न सह पाया
जानता था कि उसके होते
कुछ न कर पाएगा वो
चला गया ख़ाली हाथ
अपना सा मुँह ले कर
दोबारा उस आँगन की ओर
कभी न देखने के लिए
(November 28, 2019 at 1.38 A. M.)
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