बीते दिनों की याद कहाँ जाती है
वो तो दिन-रात साथ रह यों ही तडपाती है
यादों के साये काले नाग की तरह डसते हैं
कहाँ से लाऊँ वो नेवला
जो इन नागों को खा जाए
क्या हो की इन यादों के साये से निकल पाऊँ
तपती रेत पर चलते
कहीं तो सुकूँ पाऊँ
कहीं तो मिलेगा यादों के इस रेगिस्तान में कोई
मरुद्यान
जो मेरी तपती रूह को शाँत करे
और अपने शीतल जल से
यादों की इस आग को ठण्डा कर दे!!!!!!!(20.01.2010)
जो मेरी तपती रूह को शाँत करे
ReplyDeleteऔर अपने शीतल जल से
यादों की इस आग को ठण्डा कर दे!!!!!!!
wah
professor ..aap bahut achi kavitakerne lage .....
shukriya rakesh---aapke saath ka asar hai
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