औरत के जिस्म को नोचता-खसोटता
अपनी वहशी प्यास बुझाता
आदमी आगे निकल जाता है
एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता
की वो पीछे कौन सा खंडहर छोड़ आया है?
क्या उसे एहसास नहीं होता की औरत की अस्मत की कीमत नहीं होती?
क्या उसे नहीं पता की औरत पाक होती है?
उस औरत से वो अपनी वासना भुजाता है
जो जननी है, माँ
अपने इस वहेशीपन से कब निकलेगा आदमी?
कब?
क्या सब ख़त्म होने के बाद?
क्या नहीं जानता की औरत उसकी वासना की अधिकारी नहीं?
क्या नहीं जानता की औरत को प्यार दे तो वो उसके लिए अपनी जाँ भी लूटा दे?
तो क्या ज़रूरी है वासना यह नंगा नाच?(22.01.2010)
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