वो उसकी तरफ देखता रहा,
वो भी देखती रही!
वो नज़रें झुका, चली गयी,
वो तब भी उसकी तरफ देखता रहा!
बरसों बाद वो अचानक सामने दिख गयी,
समय के थपेड़ों से थीं झुरियाँ पड़ गयीं!
मन में इक कसक सी उठी,
'शायद गर मेरे साथ होती, तो यूं लुटी-लुटाई न दिखती कभी!'
सोचता रहा उसके बारे में दिन भर,
आदमी ने क्या पाया उसे हरा कर?
कहता है कि हारता हूँ उस से सदा,
नहीं जानता कि है हकीकत क्या?
औरत को हरा, खुद से न जीत पायेगा कभी,
नहीं जानता क्या ये अभी भी?
क्या औरत की हार, क्या मर्द की जीत,
हार-जीत का भी है इक अतीत!
July 25, 2011 at 1.55 P.M.
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
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