औरत हँसे तो बेहयाई,
मर्द हँसे तो वाह तेरी खुदाई!
मेरे हँसने भर पर भी कटाक्ष करते हो,
स्वयं कितने अस्वीकार्य काम करते हो!
चिल्लाते हो गर ऊँगली में दर्द हो,
दर्द की परिभाषा तुम क्या जानो!
अधिक दर्द है तुम्हारे व्यंग्य में,
जो नहीं पाया था तुम्हें पैदा करने में!
July 22, 2011 at 5:38 P.M.
This poem is inspired by Maya Mrig's post:
वह हंसा---खुली हंसी--- (वाह कितना हंसमुख है, खुले दिल का)
वह हंसी--- खुली हंसी----(कितनी बेहया है, शर्म तो बेच खाई इसने)
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