वो बोलता रहा,
वो सुनती रही!
वो शब्दों के नश्तर चलाता रहा,
वो चुप सहती रही!
"मेरी बांदी है तू," वो बोला!
उसने फिर भी अपना मुँह नहीं खोला!
"मेरे पीछे चलना है तकदीर तेरी!"
उस ने तब भी आँखें नहीं फेरीं!
"कुछ कहती क्यों नहीं?
क्या मुँह में जुबां नहीं?"
उस ने फिर भी कुछ न कही!
अचानक मुड कर देखा,
तो पैरों तले ज़मीन निकल गयी!
वो लहू-लुहान पैरों से,
उस के साथ चल रही थी!
फिर वो उस से आगे निकल गयी!
उस की हिम्मत जवाब दे गयी!
जानता था अब न रोक पायेगा उसे,
क्योंकि वो चल पड़ी थी उन ख्वाबों के पीछे,
जो थे कब से उस के मन में बसे!
July 22, 2011 at 1:25 P.M.
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