ਜਿਥੇ ਪਯਾਰ ਵਸਦਾ ਓਥੇ ਰਬ ਦਾ ਨੂਰ ਵਸਦਾ
ਪਯਾਰ ਤੋ ਉਪਰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ
ਬਾਰਿਸ਼ ਦੇ ਪਯਾਰ ਚ ਮੋਰ ਨਚਦਾ
ਸੂਰਜ ਦੇ ਪਯਾਰ ਨਾਲ ਸੂਰਜਮੁਖੀ ਖਿਲਦਾ
ਚੰਦ ਦੇ ਪਯਾਰ ਚ ਪਪੀਹਾ ਕੂਕਦਾ... See More
ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਦੇ ਪਯਾਰ ਦੀ ਮੀਰਾ ਦੀਵਾਨੀ
ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਦੇ ਪਯਾਰ ਚ ਰਾਧਾ ਨਚਦੀ
ਜਿਦ ਦਿਲ ਚ ਪਯਾਰ ਨਹੀਂ
ਓ ਸ਼ੈਤਾਨ ਦਾ ਘਰ
ਪਯਾਰ ਹੈ ਤਾਂ ਸਬ ਕੁਛ
ਪਯਾਰ ਬਿਨਾ ਜੀਵਨ ਨੀਰਸ!!!!
जिथे प्यार वसदा ओथे रब दा नूर वसदा
प्यार तों ऊपर कुझ नहीं
बारिश दे प्यार च मोर नाचदा
सूरज दे प्यार नाल सूरजमुखी खिलदा
चंद दे प्यार च पपीहा कूकदा
कृशन दे प्यार दी मीरा दीवानी
कृशन दे प्यार च राधा नचदी
जिस दिल च प्यार नहीं
ओ शैतान दा घर
प्यार है ताँ सब कुछ
प्यार बिना जीवन नीरस!!!
June 30, 2010 at 4.26 P.M.
CLOSE TO ME
My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................
Wednesday, June 30, 2010
Sunday, June 27, 2010
Saturday, June 19, 2010
Thursday, June 17, 2010
Sunday, June 13, 2010
हम माटी के पुतले,
इक दिन इसी माटी में मिल जाना है!
कोई पहले,कोई बाद में,
सब ने उसके घर जाना है!
बस जो वक़्त बिताया
इक-दूजे के साथ,
वही साथ रह जाना है!
वक़्त गुजरा अच्छे से
यही सोच मुस्कुराना है!
जो गया है उसकी पनाह में,
उसे खुद वही देखेगा!
हम पर भी है उसका नज़रे-करम,
यही सोच जीवन जीते जाना है!!!!
June 13, 2010 at 1.29 A.M.
इक दिन इसी माटी में मिल जाना है!
कोई पहले,कोई बाद में,
सब ने उसके घर जाना है!
बस जो वक़्त बिताया
इक-दूजे के साथ,
वही साथ रह जाना है!
वक़्त गुजरा अच्छे से
यही सोच मुस्कुराना है!
जो गया है उसकी पनाह में,
उसे खुद वही देखेगा!
हम पर भी है उसका नज़रे-करम,
यही सोच जीवन जीते जाना है!!!!
June 13, 2010 at 1.29 A.M.
Friday, June 11, 2010
Wednesday, June 9, 2010
घर की दर-ओ-दीवार,
माँ का लाड़,
पिता का प्यार,
आज भी याद आता है,
तो मैं फिर वही
नन्हीं-सी बच्ची
बन जाती हूँ!
दुनिया की नज़रों में,
बहुत बड़ी हो चुकी हूँ!
पर माता-पिता के
प्यार-ओ-दुलार के लिए
अभी भी बची हूँ!
नहीं चाहती कभी भी बड़ा होना,
उनके सामने,
कि कहीं मुझे बड़ा समझ,
उनका दुलार कम न हो जाए मेरे लिए!
जानती हूँ स्वार्थ है इस में मेरा,
पर उनके दुलार के लिए,
स्वार्थी कहलाना भी मंज़ूर है मुझे!!!!
June 9, 2010 at 2.06 P.M.
माँ का लाड़,
पिता का प्यार,
आज भी याद आता है,
तो मैं फिर वही
नन्हीं-सी बच्ची
बन जाती हूँ!
दुनिया की नज़रों में,
बहुत बड़ी हो चुकी हूँ!
पर माता-पिता के
प्यार-ओ-दुलार के लिए
अभी भी बची हूँ!
नहीं चाहती कभी भी बड़ा होना,
उनके सामने,
कि कहीं मुझे बड़ा समझ,
उनका दुलार कम न हो जाए मेरे लिए!
जानती हूँ स्वार्थ है इस में मेरा,
पर उनके दुलार के लिए,
स्वार्थी कहलाना भी मंज़ूर है मुझे!!!!
June 9, 2010 at 2.06 P.M.
Tuesday, June 8, 2010
Monday, June 7, 2010
मेरा दोस्त ना जाने कहाँ खो गया है?
कहता है कि हमारी बात करो!
क्या उसे नहीं पता कि "हम" नहीं हैं?
मैं भी बटी हुई हूँ,
और वो भी!
शायद मैं कुछ ज्यादा और वो थोडा कम!
क्या फुर्सत नहीं उसके पास,
या कम बात करना चाहता है?
क्या मेरे लिए वक़्त इस लिए नहीं,
कि अब मैं और मेरी बातें,
बोझ लगने लगी हैं उसे?
वो कहता है कि क्या बात करें?
मेरे पास तो बहुत है उसे कहने को!
क्या वक़्त है उसके पास सुनने को?
मेरी जगह शायद कम हो गयी उसकी ज़िन्दगी से!
क्या पता ऐसा ना हो!
शायद मेरे मन का भ्रम हो!
मैं तो वहीँ हूँ जहाँ से मेरा दोस्त गया था!
वो भी शायद मुझे मिल जाए वहीँ,
जहाँ से वो गया था!!!June 6, 2010 at 1:38pm
कहता है कि हमारी बात करो!
क्या उसे नहीं पता कि "हम" नहीं हैं?
मैं भी बटी हुई हूँ,
और वो भी!
शायद मैं कुछ ज्यादा और वो थोडा कम!
क्या फुर्सत नहीं उसके पास,
या कम बात करना चाहता है?
क्या मेरे लिए वक़्त इस लिए नहीं,
कि अब मैं और मेरी बातें,
बोझ लगने लगी हैं उसे?
वो कहता है कि क्या बात करें?
मेरे पास तो बहुत है उसे कहने को!
क्या वक़्त है उसके पास सुनने को?
मेरी जगह शायद कम हो गयी उसकी ज़िन्दगी से!
क्या पता ऐसा ना हो!
शायद मेरे मन का भ्रम हो!
मैं तो वहीँ हूँ जहाँ से मेरा दोस्त गया था!
वो भी शायद मुझे मिल जाए वहीँ,
जहाँ से वो गया था!!!June 6, 2010 at 1:38pm
रात के काले अँधेरे के साए में,
मैं दुबक के इक कोने में बैठा था!
कहीं भूतों के साए थे,
और कहीं अतृप्त आत्माओं की सिसकियाँ!
मेरी आत्मा इस चीख-ओ-पुकार से,
मेरे अंतर्मन में और दुबकती जा रही थी!
अचानक मेरी आत्मा की गहराईओं से इक आवाज़ आई:
'क्या हुआ है तुझे?
क्यों इस तरह बैठा है?
मेरी ओर देख,मैं तेरे साथ हूँ!'
सब चीख-ओ-पुकार ख़तम हो गया,
ऐसे जैसे मनो कभी था ही नहीं!
तब समझ में आया,
कि सच्चे मन से उस निराकार में
लौ लगाने का मतलब ही जीवन है!(07.06.2010)
मैं दुबक के इक कोने में बैठा था!
कहीं भूतों के साए थे,
और कहीं अतृप्त आत्माओं की सिसकियाँ!
मेरी आत्मा इस चीख-ओ-पुकार से,
मेरे अंतर्मन में और दुबकती जा रही थी!
अचानक मेरी आत्मा की गहराईओं से इक आवाज़ आई:
'क्या हुआ है तुझे?
क्यों इस तरह बैठा है?
मेरी ओर देख,मैं तेरे साथ हूँ!'
सब चीख-ओ-पुकार ख़तम हो गया,
ऐसे जैसे मनो कभी था ही नहीं!
तब समझ में आया,
कि सच्चे मन से उस निराकार में
लौ लगाने का मतलब ही जीवन है!(07.06.2010)
Tuesday, June 1, 2010
मत हवा दो राख़ को.....
राख़ बन चुकी है हर ख्वाहिश!
दिल की हर तमन्ना अब ख़त्म हो चुकी है!
इस राख़ के ढेर को हवा मत दो,
इस में न शोला है न चिंगारी!
इस राख़ में तो मेरे दर्द दफ़न हैं!
हवा दोगे इस राख़ को,
तो दर्द टीस मारेंगे!
जीने नहीं देंगे ये दर्द फिर मुझे!
कब तक लादूँगा इस जिंदा लाश का बोझ मैं?
इस राख़ के ढेर को हवा मत दो,
इस में न शोला है न चिंगारी!(01.06.2010)
दिल की हर तमन्ना अब ख़त्म हो चुकी है!
इस राख़ के ढेर को हवा मत दो,
इस में न शोला है न चिंगारी!
इस राख़ में तो मेरे दर्द दफ़न हैं!
हवा दोगे इस राख़ को,
तो दर्द टीस मारेंगे!
जीने नहीं देंगे ये दर्द फिर मुझे!
कब तक लादूँगा इस जिंदा लाश का बोझ मैं?
इस राख़ के ढेर को हवा मत दो,
इस में न शोला है न चिंगारी!(01.06.2010)
ये पागल दिल मेरा
अब सँभाले संभालता नहीं!
दुनिया की जंजीरों को तोड़,
आकाश में स्वछंद उड़ना चाहता है!
पर्वतों के पार,
बादलों के संग,
आसमान की ऊंचाइयों को
छूना चाहता है!
चाहता है एक बार फिर मिलन हो उससे,
जो उसका पूरक है!
चाहता है उससे मिलना वहाँ,
जहाँ कोई बंधन न हो!
समाँ जाती है जिस तरह सरिता सागर में,
जल जाता है जिस तरह पतंगा मोमबत्ती की लौ में,
गुम हो जाता है जिस तरह पपीहा चाँद के प्रेम में,
मेरा मन भी उसी तरह विलीन हो जाना चाहता है,
अपने प्रेमी में!
कुछ इस तरह की मेरी देह मेरी न रहे,
और मैं उस में समाँ जाऊं,
सदा के लिए!(01.06.2010)
अब सँभाले संभालता नहीं!
दुनिया की जंजीरों को तोड़,
आकाश में स्वछंद उड़ना चाहता है!
पर्वतों के पार,
बादलों के संग,
आसमान की ऊंचाइयों को
छूना चाहता है!
चाहता है एक बार फिर मिलन हो उससे,
जो उसका पूरक है!
चाहता है उससे मिलना वहाँ,
जहाँ कोई बंधन न हो!
समाँ जाती है जिस तरह सरिता सागर में,
जल जाता है जिस तरह पतंगा मोमबत्ती की लौ में,
गुम हो जाता है जिस तरह पपीहा चाँद के प्रेम में,
मेरा मन भी उसी तरह विलीन हो जाना चाहता है,
अपने प्रेमी में!
कुछ इस तरह की मेरी देह मेरी न रहे,
और मैं उस में समाँ जाऊं,
सदा के लिए!(01.06.2010)
Subscribe to:
Posts (Atom)