जो तीर चले तो सीने को भेद दे,
जो दरिया रुके तो बर्बादी फैला दे!
जो मेरे संग चले,
तो जाने मेरी गहराई को!
मैं शब्दों के बाण नहीं चलाता!
न ही मैं दरिया की तरह रुक सब तहस-नहस करता!
मैं पेड की वो छाँव
जो ठंडक दे!
मैं वो कायनात
जो रंगत दे!
मैं वो दुनिया
जो अपने दुश्मनों को भी ख़ुशी दे!!!
June 6, 2010 at 12:34am
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