ये पागल दिल मेरा
अब सँभाले संभालता नहीं!
दुनिया की जंजीरों को तोड़,
आकाश में स्वछंद उड़ना चाहता है!
पर्वतों के पार,
बादलों के संग,
आसमान की ऊंचाइयों को
छूना चाहता है!
चाहता है एक बार फिर मिलन हो उससे,
जो उसका पूरक है!
चाहता है उससे मिलना वहाँ,
जहाँ कोई बंधन न हो!
समाँ जाती है जिस तरह सरिता सागर में,
जल जाता है जिस तरह पतंगा मोमबत्ती की लौ में,
गुम हो जाता है जिस तरह पपीहा चाँद के प्रेम में,
मेरा मन भी उसी तरह विलीन हो जाना चाहता है,
अपने प्रेमी में!
कुछ इस तरह की मेरी देह मेरी न रहे,
और मैं उस में समाँ जाऊं,
सदा के लिए!(01.06.2010)
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