सबको दिल की बात बताना कहाँ मुमकिन होता है
ये फ़साना सब को बयाँ नहीं किया जाता
अंधे-बहरों के शहर में
सब दिल की बात कहाँ समझते हैं
सुन कतरा निकल जाते हैं
किसको दिल की गहराईयों का इल्म है
परतों में क्या छुपा है
कौन जानता है
क्या बताएँ दिल की बात को
कोई हम-ज़ुबां, हम-नफ्ज़, हम-लफ्ज़ तो मिले!!!!
October 4, 2010 at 8.52 A.M.
No comments:
Post a Comment