वक़्त चलता रहा और सोचता रहा इंसान।
कौन हूँ मैं,
कहाँ से आया हूँ,
और कहाँ जाना है मुझे?
वक़्त चलता रहा और सोचता रहा इंसान।
बचपन आया और गया खेल-कूद में,
जवानी को घेरा रंगीन मस्तियों ने,
झुक गयी कमर जब बोझे ज़िंदगी से,
घबरा कर भूल गया वो अपना ईमां।
वक़्त चलता रहा और सोचता रहा इंसान।
दिल ने कोसा फिर एक दिन,
कब तक रहोगे भटकते।
आने लगी है ज़िंदगी की शाम।
कौन हो तुम, कहाँ जान है तुझे?
वक़्त चलता रहा और सोचता रहा इंसान।
दूर से फिर इक आई आवाज़,
हिम्मत करो, और सोचो, और सोचो।
मिलेगा ज़रूर तुझे इक दिन जवाब।
इसी सोच में है तेरी खोज।
वक़्त चलता रहा और सोचता रहा इंसान।
कौन हूँ मैं,
कहाँ से आया हूँ,
और कहाँ जाना है मुझे?
वक़्त चलता रहा और सोचता रहा इंसान।
सच कहा...वक़्त चलता रहा
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