मंदिर के बाहर भगवन को बेच दिया
अल्लाह की बोली लगी मस्जिद के पास
वाहेगुरु का घर आतंकियों ने अन्दर से खोखला कर दिया
ईसा के नाम पर लड़ रहे हैं जीउ और फिलिस्तीनी
इन्सां से अच्छे तो परिंदे हैं
कभी मंदिर पे जा बैठे
कभी मस्जिद पर घोंसला बना लिया
गुरूद्वारे, गिरजा में फर्क नहीं उनके लिए
इन्सां ने फर्क की दिवार खड़ी कर
सब अस्त-व्यस्त कर दिया
लहू-लुहान है धरती
अंधकारमय है आसमान
लाल कालिख में खो गया है कहीं
अपने ज़हरीले दांत ख़ुद में गाड़ता
ज़ख़्मी जिस्म
चाक जिगर
तार-तार है पैरहन
काटों में उलझी आत्मा
कहाँ ढूंढें पनाह
नज़रे-कर्म हो ग़र ख़ुद पर
तो धरती भी स्वर्ग हो जाए
और ईशवर बैकुंठ जा न बैठें!!!
October 6, 2010 at 9.48 P.M.
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