तुम्हारे प्रेम में,
जलते हुए पत्थरों से,
ओस की बूँदें टपकी हैं!
जिस्म छिल गया,
रूह पर मरहम
बाकी है!
हादसों भरी ज़िंदगी में,
तुम्हारे प्रेम का,
भरम अभी बाकी है!
काँटों भरे दिन में,
मुलायम तेरे प्यार की,
महक शब में अभी बाकी है!
पाँव के छालों से,
हाथों के ज़ख्मों तक का सफर,
अभी बाकी है!
दिल चीर कर क्या दिखाऊँ तुम्हें,
रोम-रोम पर,
तेरी परछाईं,
बाकी है!
शब्दों की माला पिरोना क्या,
हर बोल में,
तेरा असर बाकी है!!!!
(वक़्त लग जाता है अपनों को समझाने में----- ये एहसास दिलाना बाकी है......... )
May 28, 2013 at 1. 12 P.M.
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