वो जो सोहनी कच्चे घड़े से
चिनाब पार कर गई!
वो जो फरहाद,
दूध का दरिया निकाल दिया,
जिसने पत्थरों से!
वो जो जात-पात को पीछे छोड़,
उम्र की दीवारों को लाँघ,
वो जो घरों की देहलीज फलाँग,
सबसे नाता तोड़,
चले गये!
वो जो छुपते-छुपाते,
एक-दूसरे के संग भागते रहे!
वो जो बसें, रेलगाडीयाँ,
होटल, शहर,
बदलते रहे!
वो जो दुनिया के
रस्मों-रिवाज को
अँगूठा दिखा,
अपने में जीते रहे!
(प्रेम के इंद्रधनुषी रंगों के भरोसे---- उड़ते हैं खुले आसमां में.............)
May 30, 2013 at 5. 12 P.M.
May 30, 2013 at 5. 12 P.M.
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